वेबसाइट ने अपना YouTube चैनल शुरू किया है। तो जल्दी से यू-ट्यूब चैनल सब्सक्राइब करिये और बेल आइकन (घंटी) भी अवश्य दबाएं।  इससे आपको मेरे यू-ट्यूब चैनल पर अपलोड होने वाली कोई भी वीडियो का नोटिफिकेशन आप को तुरंत मिलेगा…Click here to Join My YouTube. संस्कारशौचेन परं पुनीते शुद्धा हि वुद्धिः किल कामधेनुः ॥ Guru Slokas (गुरु श्लोक ) Guru is a Sanskrit term that connotes someone who is a "teacher, guide or master" of certain knowledge. मेघराज GI क्लाउड कंप्यूटिंग क्या है? विद्या विनय देती है; विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म, और धर्म से सुख प्राप्त होता है ।, कुत्र विधेयो यत्नः विद्याभ्यासे सदौषधे दाने । १ - रंगमंच का टुकड़ा- परिचय: 00:04:24 गुरू श्लोक | Guru Shlok in Hindi - with a lot of Hindi news and Hindi contents like biography, bhagwad gita, shloka, politics, cricket, HTML, SEO, Computer, MS-Word, Vyakaran etc. कल्पान्तेऽपि न या नश्येत् किमन्यद्विद्यया विना ॥ विद्या इन्सान का विशिष्ट रुप है, गुप्त धन है । वह भोग देनेवाली, यशदात्री, और सुखकारक है । विद्या गुरुओं का गुरु है, विदेश में वह इन्सान की बंधु है । विद्या बडी देवता है; राजाओं में विद्या की पूजा होती है, धन की नहि । इसलिए विद्याविहीन पशु हि है ।. keep doing good work, Thank you very much isne mera Kam asan kar diya. सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम् सर्वस्य लोचनं शास्त्रं यस्य नास्त्यन्ध एव सः ॥ सब द्रव्यों में विद्यारुपी द्रव्य सर्वोत्तम है, क्यों कि वह किसी से हरा नहि जा सकता; उसका मूल्य नहि हो सकता, और उसका कभी नाश नहि होता ।, विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम् स्त्रियस्तन्द्रा च निन्द्रा च विद्याविघ्नकराणि षट् ॥ माधुर्य, स्पष्ट उच्चार, पदच्छेद, मधुर स्वर, धैर्य, और तन्मयता – ये पाठक के छे गुण हैं ।, विद्या वितर्को विज्ञानं स्मृतिः तत्परता क्रिया । विद्याविहीन को धन कहाँ ? विद्या माता की तरह रक्षण करती है, पिता की तरह हित करती है, पत्नी की तरह थकान दूर करके मन को रीझाती है, शोभा प्राप्त कराती है, और चारों दिशाओं में कीर्ति फैलाती है । सचमुच, कल्पवृक्ष की तरह यह विद्या क्या क्या सिद्ध नहि करती ? ज्ञानवानेव बलवान् तस्मात् ज्ञानमयो भव ॥ आद्या हास्याय वृद्धत्वे द्वितीयाद्रियते सदा ॥ From general topics to more of what you would expect to find here, boltechitra.com has it all. Vidya Mahima Slokas in Sanskrit with Meaning: पठतो नास्ति मूर्खत्वं अपनो नास्ति पातकम् ।, मौनिनः कलहो नास्ति न भयं चास्ति जाग्रतः ॥, स्वावलम्बः दृढाभ्यासः षडेते छात्र सद्गुणाः ॥, कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद्धनम् ॥, विद्या पर संस्कृत में श्लोक अर्थ सहित | Sanskrit Slokas on Vidya Education with Meaning, वेबसाइट ने अपना YouTube चैनल शुरू किया है। तो जल्दी से यू-ट्यूब चैनल सब्सक्राइब करिये और बेल आइकन (घंटी) भी अवश्य दबाएं।  इससे आपको मेरे यू-ट्यूब चैनल पर अपलोड होने वाली कोई भी वीडियो का नोटिफिकेशन आप को तुरंत मिलेगा…, नया संसद भवन New Sansad Bhavan सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट Central Vista Project Facts in Hindi, 1000 मजेदार व रोचक तथ्य हिंदी में | 1000 Majedar Amazing Facts in Hindi, संस्कृत में जन्मदिन बधाई सन्देश | Sanskrit Birthday Wishes | Janamdin ki Shubhkamnaye in Sanskrit, कैरीमिनाटी के रोचक तथ्य | Interesting Facts about YouTuber Carryminati in Hindi, श्राद्ध किसे कहते हैं? Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. अवधीरणा क्व कार्या खलपरयोषित्परधनेषु ॥ पढनेवाले को मूर्खत्व नहि आता; जपनेवाले को पातक नहि लगता; मौन रहनेवाले का झघडा नहि होता; और जागृत रहनेवाले को भय नहि होता ।, अर्थातुराणां न सुखं न निद्रा कामातुराणां न भयं न लज्जा । गाकर पढना, शीघ्रता से पढना, पढते हुए सिर हिलाना, लिखा हुआ पढ जाना, अर्थ न जानकर पढना, और धीमा आवाज होना ये छे पाठक के दोष हैं ।, माधुर्यं अक्षरव्यक्तिः पदच्छेदस्तु सुस्वरः । ४६) लक्ष्मी श्लोक / शारदा स्तवन / गणपती श्लोक पान ५ ४७) स्वामी समर्थ माला मंत्र ४८) सूर्याष्टक ४८) हनुमान चलिसा - लिंक (GauriC यांची पोस्ट) विद्या अनुपम कीर्ति है; भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, कामधेनु है, विरह में रति समान है, तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल-महिमा है, बगैर रत्न का आभूषण है; इस लिए अन्य सब विषयों को छोडकर विद्या का अधिकारी बन ।, श्रियः प्रदुग्धे विपदो रुणद्धि यशांसि सूते मलिनं प्रमार्ष्टि । आलसी इन्सान को विद्या कहाँ ? विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः । और 2013 ई. विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः ॥ लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिम् जिसे सुख की अभिलाषा हो (कष्ट उठाना न हो) उसे विद्या कहाँ से ? विद्याविनयोपेतो हरति न चेतांसि कस्य मनुजस्य । स्वावलम्बः दृढाभ्यासः षडेते छात्र सद्गुणाः ॥ और विद्यार्थी को सुख कहाँ से ? Click here for instructions on how to enable JavaScript in your browser. जुआ, वाद्य, नाट्य (कथा/फिल्म) में आसक्ति, स्त्री (या पुरुष), तंद्रा, और निंद्रा – ये छे विद्या में विघ्नरुप होते हैं ।, आयुः कर्म च विद्या च वित्तं निधनमेव च । एक एक क्षण गवाये बिना विद्या पानी चाहिए; और एक एक कण बचा करके धन ईकट्ठा करना चाहिए । क्षण गवानेवाले को विद्या कहाँ, और कण को क्षुद्र समजनेवाले को धन कहाँ ? अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ॥ With a first-rate Biz-Tech background, I love to pen down on innovation, public influences, gadgets, motivational and life related issues. स्वंच्छंदता, पैसे का मोह, प्रेमवश होना, भोगाधीन होना, उद्धत होना – ये छे भी विद्याप्राप्ति में विघ्नरुप हैं ।, गीती शीघ्री शिरः कम्पी तथा लिखित पाठकः । His name is the only refuge for those who want to cross the ocean of mundane existence. दुर्जन, परायी स्त्री और परधन में ।. Designed by Elegant Themes | Powered by WordPress, गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।, शरीरं चैव वाचं च बुद्धिन्द्रिय मनांसि च ।, गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते ।, विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम् ।, विनय फलं शुश्रूषा गुरुशुश्रूषाफलं श्रुत ज्ञानम् ।, एकमप्यक्षरं यस्तु गुरुः शिष्ये निवेदयेत् ।, दुग्धेन धेनुः कुसुमेन वल्ली शीलेन भार्या कमलेन तोयम् ।, योगीन्द्रः श्रुतिपारगः समरसाम्भोधौ निमग्नः सदा शान्ति क्षान्ति नितान्त दान्ति निपुणो धर्मैक निष्ठारतः ।, दृष्टान्तो नैव दृष्टस्त्रिभुवनजठरे सद्गुरोर्ज्ञानदातुः स्पर्शश्चेत्तत्र कलप्यः स नयति यदहो स्वहृतामश्मसारम् ।, पूर्णे तटाके तृषितः सदैव भूतेऽपि गेहे क्षुधितः स मूढः ।. भेषजमपथ्यसहितं त्रयमिदमकृतं वरं न कृतम् ॥ कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद्धनम् ॥ पुस्तकी विद्या और अन्य को दिया हुआ धन ! He is also known as Kautilya or Vishnu Gupta. सुवर्ण और मणि का संयोग किसकी आँखों को सुख नहि देता ? धैर्यं लयसमर्थं च षडेते पाठके गुणाः ॥ मौनिनः कलहो नास्ति न भयं चास्ति जाग्रतः ॥ विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा रूपं तपस्विनाम् । These enchanting guru slokas will surely make you day. तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु ॥ आलसी, गर्विष्ठ, अति सोना, पराये के पास लिखाना, अल्प विद्या, और वाद-विवाद ये छे आत्मघाती हैं ।, स्वच्छन्दत्वं धनार्थित्वं प्रेमभावोऽथ भोगिता । शुद्ध बुद्धि सचमुच कामधेनु है, क्यों कि वह संपत्ति को दोहती है, विपत्ति को रुकाती है, यश दिलाती है, मलिनता धो देती है, और संस्काररुप पावित्र्य द्वारा अन्य को पावन करती है ।. धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा । शुकोऽप्यशनमाप्नोति रामरामेति च ब्रुवन् ॥ विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥ अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठश्च षडेते पाठकाधमाः ॥ ज्ञातिभि र्वण्टयते नैव चोरेणापि न नीयते । कोकिलानां स्वरो रूपं स्त्रीणां रूपं पतिव्रतम् ॥ सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥ पञ्चैतानि विलिख्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः ॥ Chanakya Slokas (चाणक्य नीति श्लोक) Chanakya was an Indian teacher, economist and a political adviser. कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम् । अहार्यत्वादनर्ध्यत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा ॥ boltechitra.com is your first and best source for all of the information you’re looking for. मूर्खहस्ते न दातव्यमेवं वदति पुस्तकम् ॥ इसका कारण है कि पारसमणि केवल लोहे को सोना बनाता है पर स्वयं जैसा नहीं बनाता! सद्विद्या यदि का चिन्ता वराकोदर पूरणे । आभ्यन्तराः पठन सिद्धिकराः भवन्ति ॥ धनविहीन को मित्र कहाँ ? हर्तृ र्न गोचरं याति दत्ता भवति विस्तृता । पाठ १२. माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः । नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥ दाने नैव क्षयं याति विद्यारत्नं महाधनम् ॥ सत्संग ध्यान गुरु महाराज की शिष्यता-ग्रहण 14-01-1987 ई. We hope you find what you are searching for! पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥ और मित्रविहीन को सुख कहाँ ? गृहीत एव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत् ॥ ४ - गुरु वंदना- प्रदर्शन संगीत के साथ: 00:03:12 68: पाठ १२. See more ideas about thoughts for teachers day, best teachers day quotes, teachers day wishes. कुल, छल, धन, रुप, यौवन, विद्या, अधिकार, और तपस्या – ये आठ मद हैं ।, सालस्यो गर्वितो निद्रः परहस्तेन लेखकः । जैसे नीचे प्रवाह में बहेनेवाली नदी, नाव में बैठे हुए इन्सान को न पहुँच पानेवाले समंदर तक पहुँचाती है, वैसे हि निम्न जाति में गयी हुई विद्या भी, उस इन्सान को राजा का समागम करा देती है; और राजा का समागम होने के बाद उसका भाग्य खील उठता है ।, विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् । आचार्य, पुस्तक, निवास, मित्र, और वस्त्र – ये पाँच पठन के लिए आवश्यक बाह्य गुण हैं ।, दानानां च समस्तानां चत्वार्येतानि भूतले । सद्विद्या हो तो क्षुद्र पेट भरने की चिंता करने का कारण नहि । तोता भी “राम राम” बोलने से खुराक पा हि लेता है ।, न चोरहार्यं न च राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारी । किसी भी ज्ञानी व्यक्ति को कभी काम नहीं आंकना चाहिए और न ही उनका अपमान करना चाहिए क्यूंकि भौतिक सांसारिक धन सम्पदा उनके लिए तुक्ष्य घास से समान है। जिस तरह एक मदमस्त हाथी को कमल की पंखुड़ियों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता ठीक उसी प्रकार धन दौलत से ज्ञानियों को वश  में करना असंभव है ! विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।, पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥, कुत्र विधेयो यत्नः विद्याभ्यासे सदौषधे दाने ।, विद्याविनयोपेतो हरति न चेतांसि कस्य मनुजस्य ।, कांचनमणिसंयोगो नो जनयति कस्य लोचनानन्दम् ॥, विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा रूपं तपस्विनाम् ।, कोकिलानां स्वरो रूपं स्त्रीणां रूपं पतिव्रतम् ॥, माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः ।, क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम्, अजरामरवत् प्राज्ञः विद्यामर्थं च साधयेत् ।, विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो, धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा ।, सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम्, तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु ॥, श्रियः प्रदुग्धे विपदो रुणद्धि यशांसि सूते मलिनं प्रमार्ष्टि ।, संस्कारशौचेन परं पुनीते शुद्धा हि वुद्धिः किल कामधेनुः ॥, ज्ञातिभि र्वण्टयते नैव चोरेणापि न नीयते ।, दाने नैव क्षयं याति विद्यारत्नं महाधनम् ॥, विद्या शस्त्रं च शास्त्रं च द्वे विद्ये प्रतिपत्तये ।, आद्या हास्याय वृद्धत्वे द्वितीयाद्रियते सदा ॥, सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम् ।, अहार्यत्वादनर्ध्यत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा ॥, अपूर्वः कोऽपि कोशोड्यं विद्यते तव भारति ।, व्ययतो वृद्धि मायाति क्षयमायाति सञ्चयात् ॥, सर्वस्य लोचनं शास्त्रं यस्य नास्त्यन्ध एव सः ॥, विद्या राज्यं तपश्च एते चाष्टमदाः स्मृताः ॥, स्वच्छन्दत्वं धनार्थित्वं प्रेमभावोऽथ भोगिता ।, माधुर्यं अक्षरव्यक्तिः पदच्छेदस्तु सुस्वरः ।, विद्या वितर्को विज्ञानं स्मृतिः तत्परता क्रिया ।, द्यूतं पुस्तकवाद्ये च नाटकेषु च सक्तिता ।, स्त्रियस्तन्द्रा च निन्द्रा च विद्याविघ्नकराणि षट् ॥, पञ्चैतानि विलिख्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः ॥, दानानां च समस्तानां चत्वार्येतानि भूतले ।, श्रेष्ठानि कन्यागोभूमिविद्या दानानि सर्वदा ॥, तैलाद्रक्षेत् जलाद्रक्षेत् रक्षेत् शिथिल बंधनात् ।, तथा वेदं विना विप्रः त्रयस्ते नामधारकाः ॥. बुढापा और मृत्यु आनेवाले नहि, ऐसा समजकर मनुष्य ने विद्या और धन प्राप्त करना; पर मृत्यु ने हमारे बाल पकडे हैं, यह समज़कर धर्माचरण करना ।, विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो | Meghraj Cloud Computing Project, ओरगेनो क्या है एवं ओरगेनो के फायदे | What is Oregano Benefits in Hindi, विवाह वर्षगांठ की बधाई संस्कृत में शुभकामनाएँ | Marriage Anniversary Wish in Sanskrit, सत्य पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Shlokas for Truth in Hindi, विद्यार्थियों के लिए 100 बहुत छोटे सुविचार | 100 Motivational Thoughts in Hindi for Student, किन्नर किसे कहते है | All about Transgenders, महापुरुषों के अनमोल एवं प्रेरक वचन, वाक्य, विचार, उद्धरण, motivational thoughts in hindi for student. ५ - गुरु वंदना- शोलक और उसके मायने: 00:01:07 69: पाठ १३. गुरु की सेवा करके, अत्याधिक धन देकर, या विद्या के बदले में हि विद्या पायी जा सकती है; विद्या पानेका कोई चौथा उपाय नहि ।, विद्याभ्यास स्तपो ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः । किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या ॥ आरोग्य, बुद्धि, विनय, उद्यम, और शास्त्र के प्रति राग (आत्यंतिक प्रेम) – ये पाँच पठन के लिए आवश्यक आंतरिक गुण हैं ।, आचार्य पुस्तक निवास सहाय वासो । यहां पर श्री राम के संस्कृत श्लोक (Shri Ram Mantra in Hindi) शेयर किये है। उम्मीद करते हैं आपको यह संस्कृत श्लोक पसंद आयेंगे। यह विद्यारुपी रत्न महान धन है, जिसका वितरण ज्ञातिजनों द्वारा हो नहि सकता, जिसे चोर ले जा नहि सकते, और जिसका दान करने से क्षय नहि होता ।, विद्या शस्त्रं च शास्त्रं च द्वे विद्ये प्रतिपत्तये । नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् । Click here for instructions on how to enable JavaScript in your browser. गुरु शिष्य ही परंपरा आपल्या देशांत फार प्राचीन काळापासून चालत आली असून आज देखील या परंपरेचे पालन केले जाते. Here is collection of Some popular Guru Slokas : विद्या जैसा बंधु नहि, विद्या जैसा मित्र नहि, (और) विद्या जैसा अन्य कोई धन या सुख नहि ।, अनेकसंशयोच्छेदि परोक्षार्थस्य दर्शकम् । Santshri Suman Bhaijiwas born on the 13th of April 1958 on the bank that purifies the guilty Bhagirathi mother Ganga. I am doing Internet classes from home and it really helps me and I request to all that stay at home and stay safe. But some of them are not so good. प्रिय वचन से दिया हुआ दान, गर्वरहित ज्ञान, क्षमायुक्त शौर्य, और दान की इच्छावाला धन – ये चार दुर्लभ है ।, अव्याकरणमधीतं भिन्नद्रोण्या तरंगिणी तरणम् । विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम् These shloks are Very good and very nice. Happy Birthday wishes in Sanskrit | संस्कृत में जन्मदिनम् Best happy birthday Status in sanskrit language for whatsapp and facebook share for everyone. हे सरस्वती ! Your email address will not be published. सुख की ईच्छा रखनेवाले ने विद्या की आशा छोडनी चाहिए, और विद्यार्थी ने सुख की ।, ज्ञानवानेन सुखवान् ज्ञानवानेव जीवति । अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम् ॥ करोडों शास्त्रों से भी क्या मिलेगा? विद्याभ्यास, सदौषध और परोपकार में । अनादर कहाँ करना ? योग्य समय आने पर ऐसी विद्या विद्या नहीं और धन धन नहीं, अर्थात् वे काम नहीं आते ।. सब दानों में कन्यादान, गोदान, भूमिदान, और विद्यादान सर्वश्रेष्ठ है ।, तैलाद्रक्षेत् जलाद्रक्षेत् रक्षेत् शिथिल बंधनात् । चित्त (मन) की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है।, अर्थ- विद्वत्व, दक्षता, शील, संक्रांति, अनुशीलन, सचेतत्व और प्रसन्नता ये सात शिक्षक के गुण होते हैं।, अर्थ- जहाँ गुरु की निंदा होती है, वहाँ उसका विरोध करना चाहिए। यदि यह शक्य (संभव) न हो तो कान बंद करके बैठना चाहिए और यदि यह भी शक्य (संभव) न हो तो वहाँ से उठकर दूसरे स्थान पर चले जाना चाहिए।, अर्थ- विनय का फल सेवा है, गुरुसेवा का फल ज्ञान है, ज्ञान का फल विरक्ति है और विरक्ति का फल आश्रव निरोध है।, अर्थ- अभिलाषा रखने वाले, सब भोग करने वाले, संग्रह करने वाले, ब्रह्मचर्य का पालन न करने वाले और मिथ्या (झूठा) उपदेश देने वाले गुरु नहीं होते हैं।, अर्थ- गुरु शिष्य को जो एकाद (एक) अक्षर का भी ज्ञान देता है, तो उसके बदले में पृथ्वी का ऐसा कोई धन नहीं, जिसे देकर गुरु के ऋण में से मुक्त हो सकें।, अर्थ- जैसे दूध बगैर गाय, फूल बगैर लता, शील बगैर भार्या, कमल बगैर जल, शम बगैर विद्या और लोग बगैर नगर शोभा नहीं देते, वैसे ही गुरु बिना शिष्य शोभा नहीं देता।, अर्थ- योगियों में श्रेष्ठ, श्रुतियों को समझा हुआ, (संसार/सृष्टि) सागर में समरस हुआ, शांति-क्षमा-दमन ऐसे गुणोंवाला, धर्म में एकनिष्ठ, अपने संसर्ग से शिष्यों के चित्त को शुद्ध करनेवाले, ऐसे सद्गुरु बिना स्वार्थ अन्य को तारते हैं और स्वयं भी तर जाते हैं ।, अर्थ- तीनों लोक जैसे स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल में ज्ञान देने वाले गुरु के लिए कोई उपमा नहीं दिखाई देती। गुरु को पारसमणि के जैसा मानते है, तो वह ठीक नहीं है। अजरामरवत् प्राज्ञः विद्यामर्थं च साधयेत् । गुरु महिमा वंदना श्लोक | Sanskrit Slokas on Guru Teacher with Hindi Meaning → Shivesh Pratap My articles are the chronicles of my experiences - mostly gleaned from real life encounters. लकडे का हाथी, और चमडे से आवृत्त मृग की तरह वेदाध्ययन न किया हुआ ब्राह्मण भी केवल नामधारी हि है ।, गुरुशुश्रूषया विद्या पुष्कलेन धनेन वा । विद्या राज्यं तपश्च एते चाष्टमदाः स्मृताः ॥ Required fields are marked *. Rochak Post Hindi, Interesting Facts, मोटिवेशन हिंदी, अच्छे अनमोल वचन हिंदी में, संस्कृत श्लोक व अर्थ संग्रह Best Hindi Blog, आदि काल से ही हमारी भारतीय संस्कृति में शिक्षा का बड़ा महत्व रहा है| शिक्षा को अमरत्व का साधन माना गया है| “सा विद्या या विमुक्तये” का मंत्र संसार की एकमात्र हिंदू संस्कृति में मिलता है और इस तरह से हमारी संस्कृति ने सनातन काल से ही गुरु शिष्य परंपरा के माध्यम से शिक्षा को जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग माना है | यही कारण है कि समय समय पर हमारे ऋषि मुनियों के साथ-साथ समाज ने शिक्षा के महत्व पर आधारित संस्कृत श्लोकों की तमाम रचनाएं की जिसे आज मैं यहां संकलित कर रहा हूं मुझे विश्वास है कि यह आपको अच्छा लगेगा, संयोजयति विद्यैव नीचगापि नरं सरित् । यत्न कहाँ करना ? गुरु वंदना, निश्शंक होई रे मना ओम श्री स्वामी समर्थ - श्लोक नागेन्द्र हाराये शिवतांडव - स्तोत्र शिव श्लोक हे जग त्राता रुप संपन्न, यौवनसंपन्न, और चाहे विशाल कुल में पैदा क्यों न हुए हों, पर जो विद्याहीन हों, तो वे सुगंधरहित केसुडे के फूल की भाँति शोभा नहि देते ।. मातेव रक्षति पितेव हिते नियुंक्ते Everything About Lord Shri Rama: Lord Shri Rama is the supreme personality of Godhead. कांचनमणिसंयोगो नो जनयति कस्य लोचनानन्दम् ॥ by praveen gupta | May 28, 2018 | श्लोक | 0 comments, गुरू एक संस्कृत भाषा का शब्द है, जो किसी व्यक्ति को शिक्षक, मार्गदर्शक या ज्ञान बाँटने वाले व्यक्ति के रूप में प्रख्यापित करता है। गुरू वह है जो ज्ञान देता है। अर्थात सांसारिक या पारमार्थिक ज्ञान देने वाले व्यक्ति को गुरू कहते हैं।, कुछ लोकप्रिय गुरू के संस्कृत श्लोक निम्नलिखित हैं।, अर्थ- गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही शंकर है और गुरु ही साक्षात् परब्रह्म है। हम उन सद्गुरु को प्रणाम करते हैं।, अर्थ- गुरु के पास हमेशा उनसे छोटे आसन पर ही बैठना चाहिए। गुरु के आते हुए दिखाई देने पर भी अपनी मनमानी से नहीं बैठे रहना चाहिए। अर्थात गुरू का आदर करना चाहिए।, अर्थ- शरीर, वाणी, बुद्धि, इंद्रिय और मन को संयम (काबू) में रखकर, हाथ जोडकर गुरु के सन्मुख (सामने) देखना चाहिए।, अर्थ- ‘गु’कार याने अंधकार, और ‘रु’कार याने तेज; जो अंधकार का निरोध (ज्ञान का प्रकाश देकर अंधकार को रोकना) करता है, वही वास्तव में गुरू कहलाता है।, अर्थ- प्रेरणा देने वाले, सूचना देने वाले, सच बताने वाले, रास्ता दिखाने वाले, शिक्षा देने वाले और बोध कराने वाले ये सभी गुरु के समान है ।, अर्थ- बहुत कहने से क्या होगा? जो चोरों के नजर पडती नहि, देने से जिसका विस्तार होता है, प्रलय काल में भी जिसका विनाश नहि होता, वह विद्या के अलावा अन्य कौन सा द्रव्य हो सकता है ? विद्यातुराणां न सुखं न निद्रा क्षुधातुराणां न रुचि न बेला ॥ The childhood of Gōsvāmī Tulasīdās Jī Gōsvāmī Tulasīdās Jī was born to a Sarayupārīṇ Brāhmin Ātmārām Dubey and his wife Hulasī on the day of Shrāvaṇa-Shukla-Saptamī (the seventh day of the bright half of the Shrāvaṇa month) in the Vikrami Samvat 1554 (1497 CE) as per the Mula Gosain Charita. बाह्या इमे पठन पञ्चगुणा नराणाम् ॥